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जो रिश्तों के बीच में डर फैलाते हैं / राज़िक़ अंसारी

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जो रिश्तों के बीच में डर फैलाते हैं
अपना कचरा सब के घर फैलाते हैं

घोला जाए अब विश्वास हवाओं में
उड़ने वाले पंछी पर फैलाते हैं

हम लोगों को राह बनाकर चलना है
फैलाने दो जो पत्थर फैलाते हैं

दिल का दर्द उभर आता है ग़ज़लों में
हम जब आंसू काग़ज़ पर फैलाते हैं

दुनिया वाले प्यार की भाषा समझेंगे
अपने बाज़ू हम अकसर फैलाते हैं