भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो लगि राम नाम नहिं चीना / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 28 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो लगि राम नाम नहिं चीना।
जैसे नार पिया बिना डोलत रहत सकल विधि हीना।
ऐसई जगत भगत बिन व्याकुल बेजल तलफत मीना।
भयो विहाल जाल जग ग्रहनों सब विध भयो अधीना।
नाम बिना बेस्वारत जग में जोग जग्य तप कीना।
मन बिन विकल भुजंग भुलानो भई तासु गत दीना।
बेसुगंध को फूल अजब रंग आद अंत पर पीना।
जूड़ीराम भजन बिन देही वृक्ष भयो जग जीना।