भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो लो मन पाखंड में भूला / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो लो मन पाखंड में भूला।
तो लग नहिं विश्राम जीव को काल कर्म समतूला।
टोपी तिलक माल उर पहरी बृम ग्यान नहिं झूला।
भगत विहीन मीन ज्यौं जल बिन-बिन सुगंध के फूला।
दोरत फिरत चहूंदिस ब्याकुल राम नाम बिन लूला।
भजन गुमान सान काया में मन के मिटे न सूला।
खट दरसन पाखंड छियानवे इन पारी डूला।
जूड़ीराम नाम चीन्हें बिनको दुलहन को दूला।