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जो व्यक्त नहीं कर पाया हूँ / कीर्ति चौधरी
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जो व्यक्त नहीं कर पाया हूँ
वह क्या मेरे मन में नहीं है ?
जो भी सोची जा सकती है
पीड़ा क्या नहीं तन ने सही है ?
वहाँ करुणा की धार उपजी
जो नहीं मुझ तक बही है ।
मैं ने तो अरे, पा कर लेने को
वह बाँह ही जा गही है ।