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जो सीने में धड़कता दिल न होता / सिया सचदेव

जो सीने में धड़कता दिल न होता
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥
 
अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥
 
किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥
 
नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥
 
ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥
 
सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥