जो हाथ बढ़ा कहां रिफाक़त का है
दुश्मन का इरादा तो शरारत का है
तहज़ीब इंसानियत का मुंह तकती है
इंसां पे अभी दौर ज़हालत का है।
जो हाथ बढ़ा कहां रिफाक़त का है
दुश्मन का इरादा तो शरारत का है
तहज़ीब इंसानियत का मुंह तकती है
इंसां पे अभी दौर ज़हालत का है।