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ज्ञानू-दानु की छ्वीं / सुन्दर नौटियाल

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ज्ञानू-दानु की छ्वीं क्या लाण
घरू-घरू की यख ये छ्वींकाण
द्वयों न हाथ खुटा छोड़िली
द्वयों न छोड़िली खाण कमाण ।।
ज्ञानु बी.ए. एम.ए. करीक पास ह्वैगे
बी.एड. करीक नौकरी लैगे खास ह्वैगे
दानु दस का गळा मंगन उकळि नि सकी
गौं मा रैगे झुंतु बणी उदास ह्वैगे ।
घर मा रैक सुद्दी बैठी करू त क्या करू ?
सात झणौ कुटमदारी की पोटकी कनै भरू ?
डोखरी फुंड कुछ खतु बि त द्यो होण नि देंद
बांदर, सुंगर, कैड़ा, सौला कुछ रौण नि देंद ।
लाख द्वी लाख सि कम द्वी भैंसी नि ओंद
दानु जन गरीबु मंग इतक्या पैंसी नि रौंद ।
ज्ञानु कौं मा पैसा छ पर भैंसी रखदा नी
दानु कौं कबि इतक्या पैंसी द्यख्दा नी ।
एक जोड़ी ढांगा बल्द बण चरौणै लग्यां
दानु की सार बिचारा सरौणै लग्यां ।
हौर बग्त त ज्ञानु तणतण्वै रैंदू
हौळ तांगळ कि बगत दानु तैं दिखेंदु ।
डोखरी बस्ती रखीदी दानु हौळ लैदी
चाए तु इकसिंया हळदी, जोळ लैदी ।
हळुंगु-ज्वा, मैया-लाट, तेरू हि न्यार
मेरी बि सार त्वैन हि सरौण, पकड़ हजार ।
दानु की झुलाण्यां मुखड़ि रंगचंग्याळ ह्वै जांद
हौळ रोपणी कि बगत तैकी ऐंचमुंड्याळ ह्वै जांद ।
तन त पाणी पेणा कु बि मैं तैं टैम नी छ
पर तुमुन बोल्णु कि अब पुराणु प्रेम नी छ ।
पर अद्धा गैली मैं तैं कुछ ठुंगार बि चैंद
नाश्ता-पाणी, बिड़ी-चा दगड़ा, द्वी हजार बि चैंद ।
ज्ञानु घिचा भितर गाळी देंदु मुख पिराण्यां करदू
मर्यां मन सि ज्वा हळंगु ल्हिजाण्यां करदू ।
चार डोखरी रड़ैलि दानु न पर आराम नि कैरी
माटा आंगळी नि कैरी ज्ञानु न काम नि कैरी ।
ढाळी छैला, फोन गैळा मस्त बैठ्युं रै
रूप्या नि देण दानु तैं ईं अकड़ मा ऐंठ्यु रै ।
दोफरा कि तड़तड़ी रूड़ि म दानु छैला बैठीग्ये
छुमा बौ कु कमंडल, कल्यार कु थैला पौंछिग्ये ।
लसपसी तिलू कि चटणि, भुटीं मर्च सात मा
दुनियां सि मथि कु स्वाद, छुमा बौका हात मा ।
बिना पुछ्यां भुजी डाल्दी, रोड़दा देंदी हाथ मा
अपड़ा मन की बात खोल्दी छुमा बात बातमा ।
मुख अग्वाड़ि की डोखरी छ, सिंज्वाणी की सार छ
डैंकणी, भिमळ, गिर्याल डाळी, बिजाईं कु न्यार छ ।
बड़ी कुटमदारी तुमारी, खांदारा, करदारा छक्की छा
बस द्यूर हमारी डोखरी अधेळ-भग्येळ मा रक्खी ल्या ।
अन्न-पाणी, न्यार-पात, जतक्या होलु तुमारू छा
शर्मसार छपन्ये जाऊ, बस नौ खराब नि ह्वा ।
देरादूण कुड़ी बणै, यौंन मैकु मुंडारू कैली
जिबनभर यौं पुंग्ड़यौं न, मेरू दिमाक सारू खैली ।
बौजी की आंख्यों का आँसु, दानु भितर तक भिजै जांदा
ह्वै जालु फिकर नि करा, इतक्या रूंदेड़ा क्यै लांदा ।
तुम अपड़ु न्यौ-निसाब करा, डोखर्यों मैं सम्हाळुलू
पांच हजार सालाना दी द्या, परिवार मैं बि पाळुलू ।
चुपचाप तबरि बिटीन ज्ञानु द्वियौं की बात सुणनु थै,
हिसाब-किताब लाणु थै, अर छ्वीं बात पुणनु थै ।
नोट बि द्या अर डोखरी बि, बात तै थैं जमणि नी
पर जनानि की अड्यूंण समणि बात तै की चलणि नी ।
डोखरी पुंगड़ि छोड़ि ज्ञानु, देरादूण जाण लैगी
सेठु कि सार लीक दानु, ठुल्लु किसाण ह्वैगी ।
पाड़ु मा ज्ञानु सा सेठ ह्वैग्ये, दानु जना कई किसाण
अब तुमी बतावा दगड़या मिन या छ्वीं कैमा लगाण ।।