भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज्यूं पुरइन पात ( हाइकु) /रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
१-उनका मन

ज्यूं पुरइन पात

भीगता नहीं |


 
२-सोने- सी भोर

सिंदूरी -सी निखरी

नई -नवेली |


 
३-मेघों के घेरे

चन्दा के आस-पास

मन मचले |


 
४-बंशी के स्वर

क्यों काँप रहे आज

राग क्यों रूठा ?


 
५-सीप -बसेरे

रेत के घरौदों में

मोती न मिले |


 
६-नेह -निबाह

न होता अँधेरे में

उजाले चाहे |


 
७-रूप आभा से

रोशन हो अन्धेरा

सुखानुभूति |


 
८-टिका लूं पैर

ठोस धरातल पे

तब तो उडूं |


 
९-बदल देंगे

गुरुत्वाकर्षण को

सपने मेरे |


 
१०-आत्मा में डूब

चेतना की साधना

तपस्यारत |