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ज्यूं पुरइन पात ( हाइकु) /रमा द्विवेदी

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१-उनका मन
ज्यूं पुरइन पात
भीगता नहीं |

२-सोने- सी भोर
सिंदूरी -सी निखरी
नई -नवेली |

३-मेघों के घेरे
चन्दा के आस-पास
मन मचले |

४-बंशी के स्वर
क्यों काँप रहे आज
राग क्यों रूठा ?

५-सीप -बसेरे
रेत के घरौदों में
मोती न मिले |

६-नेह -निबाह
न होता अँधेरे में
उजाले चाहे |

७-रूप आभा से
रोशन हो अन्धेरा
सुखानुभूति |

८-टिका लूं पैर
ठोस धरातल पे
तब तो उडूं |

९-बदल देंगे
गुरुत्वाकर्षण को
सपने मेरे |

१०-आत्मा में डूब
चेतना की साधना
तपस्यारत |