ज्यौंही कछु कहन संदेस लग्यौ त्यौंही लख्यौ
प्रेम-पूर उमंगि गरे लौं चढ्यौ आवै है।
कहै रत्नाकर न पाँव टिकि पावैं नैंकु ।
एसौ दृग- द्वारनि स -वेग कढ़यौ आवै है।
मधुपुर राखन कौ वेगि कछु ब्यौंत गढौ
धाइ चढ़ौ वट कै न जोपै गढ़यौ आवै है ।
आयौ भज्यौ भूपति भागीरथ लौं हौं तौ नाथ
साथ लायौ सोई पुन्य- पाथ बढयौ आवै है ।।