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ज्वालामुखी गिरि तैं गिरत द्रवे द्रव्य कैधौं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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ज्वालामुखी गिरि तैं गिरत द्रवे द्रव्य कैधौं
बारिद पियौ है बारि बिष के सिवाने में ।
कहै रतनाकर कै काली दाँव लेन-काज
फेन फुफकारै उहि गाँव दुख-साने में ॥
जीवन बियोगिनी कौ मेघ अँचयौ सो किधौं
उपच्यौ पच्यौ न उर ताप अधिकाने में ।
हरि-हरि जासौं बरि-बरि सब बारी उठैं
जानै कौन बारि बरसत बरसाने में ॥112॥