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ज्वालामुखी / मंजूषा मन

जाने कौन सा ज्वालामुखी
फूट पड़ा है मन में
हर तरफ बह निकला लावा
हर नस में बहने लगा, तपता हुआ
जहाँ जगह पाता है बह निकलता है...

हरे भरे बाग़ बगीचे,
लहलहाते खेत
भरे पूरे जंगल
सब को पल में कोयला करता
बहा जा रहा है अपनी धुन में...

मन के आसमान में छाया है
गहरा काला धुंआ
इस धुंए में कुछ नज़र नहीं आ रहा
जहाँ नज़र दौड़ाओ बस धुंआ ही धुंआ
लावा ही लावा...

सुना है इस लावे के साथ
कई अनमोल तत्व भी
निकल आते हैं,
और इसके साथ
बह जाती है मन की आग
उसके बाद मन शांत हो जाता है

हाँ...
यही तो होता है
प्रेम में भी...