भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झगड़ा / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपस में झगड़ते हुए
बच्चों पर
मुझे एक दिन बड़ा गुस्सा आया
फिर गुस्से ही गुस्से में
उन्हें धमकाया
कि प्रेम से क्यों नहीं रहते
किस बात पर झगड़ रहें हैं
एक हम ही हैं
जो तुम्हारा झगड़ा झेल रहे हैं !
तभी हमारा बेटा दीपू बोला-
पापा, आप काहे को
चिंता कर रहे हैं
हम तो सारे जने मिलकर
सांसद सांसद खेल रहे हैं।