झरर-झरर मेघों से
फूट पड़ा नेह
झूम उठी नदिया
इठलाया है ताल
कूलों ने चूम लिये
लहरों के गाल
सीपी में कैद हुआ
मोती सा मेह
मेड़ों से बतियाते
चुपके से खेत
पोर पोर भींज उठी
नदिया की रेत
मदमाई धरती की
अलसाई देह
बिजुरी से डर-डर के
दुबक रही धूप
झीलों में झॉंक रहे
बदरा निज रूप
मेघों की गर्जन सुन
काँप रहे गेह