झर गये तुम्हारे पात
मेरी आशा नहीं झरी।
जर गये तुम्हारे दिये अंग
मेरी ही पीड़ा नहीं जरी।
मर गयी तुम्हारी सिरजी
जीवन-रसना-शक्ति-जिजीविषा मेरी नहीं मरी।
टर गये मेरे उद्यम, साहस-कर्म,
तुम्हारी करुणा नहीं टरी!
झर गये तुम्हारे पात
मेरी आशा नहीं झरी।
जर गये तुम्हारे दिये अंग
मेरी ही पीड़ा नहीं जरी।
मर गयी तुम्हारी सिरजी
जीवन-रसना-शक्ति-जिजीविषा मेरी नहीं मरी।
टर गये मेरे उद्यम, साहस-कर्म,
तुम्हारी करुणा नहीं टरी!