Last modified on 17 जुलाई 2019, at 00:13

झीनी सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु / आलम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 17 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलम |अनुवादक= |संग्रह= }} Category:पद <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झीनी-सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु,
             झुमरि-झुमरि झुकि ज्यों क्यों झूलै पलना ।
घुँघरू घुमत बनै घुँघुरा के छोर घने,
             घुँघरारे बार मानों घन बारे चलना ।
आलम रसाल जुग लोचन बिसाल लोल,
             ऐसे नन्दलाल अनदेखे कहूँ कल ना ।
बेर-बेर फेरि फेरि गोद लै-लै घेरि-घेरि,
             टेरि-टेरि गावें गुन गोकुल की ललना ।