Last modified on 1 फ़रवरी 2021, at 19:52

झील में बर्फ़ ने छुआ पानी / नकुल गौतम

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 1 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नकुल गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झील में बर्फ़ ने छुआ पानी
शर्म से काँपने लगा पानी

प्यास पहले भी कम न थी लेकिन,
 अब के सर से गुज़र गया पानी

 देख पाये न हम नदी सूखी
हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी

एक शातिर दिमाग़ बादल ने
खेत के कान में कहा पानी

उसकी आंखों पे था यकीं हमको,
चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी

रूह ने लिख दिये वसीअत में
आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी

घूम आओ नकुल पहाड़ों पर
जाओ बदलो ज़रा हवा पानी