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झुरमुट में अटका चाँद, कहीं अटका मन मेरा भी / हरिवंशराय बच्चन

झुरमुट में अटका चाँद, कहीं अटका मन मेरा भी।
दिन डूबा, दिन के साथ जगत
का कोलाहल डूबा,
कुछ मतलब रखता है अब तो
मेरा भी मंसूबा,
तारे मेरे मन की गलियों
में दीप जलाते हैं,
मेरे भावों में रँग भरता गोधूलि अँधेरा भी।
झुरमुट में अटका चाँद, कहीं अटका मन मेरा भी।

लहरों से लड़ना छोड़ किनारे
पर केवट आ जा,
तेरी रानी आतुर है तुझको
कहने को राजा,
किस राजमहल से कम है तेरी
राम झोपड़िया रे,
तृण-पत्तों से निर्मित पंछी का रैन बसेरा भी।
तरुवर में अटका चाँद, कहीं अटका मन मेरा भी।