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झूठे ई बनमाली / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

जे परजीवी रस चूसै छै
की करतै रखवाली
हड़पी-हड़पी भोग लगावै
बैठी करै जुगाली।

लाज लगै नै डर लागै छै
पीटै हरदम ताली
चाहे केकर्हौ दूध मिलै नै
अपन्हैं खाय छै छाली।

फूल तोड़ि जे बाग उजारै
सबके नजरें जाली
रक्षक रे जहाँ बनै नित भक्षक
झूठे ऊ वनमाली