भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण / हरियाणवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=शा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatHaryanaviRachna}} | {{KKCatHaryanaviRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण | |
− | + | पानीपत के टेसण ऊपर मींडक बांटै बाण | |
− | + | एक अचंभा मन्नै सुण्या यो कुत्ता कपडणे धोवै | |
− | + | ओबरै में म्हैस जुगालै ऊंट पिलंग पै सोवै | |
+ | झूठ तै मैं बोलूं कोन्या... | ||
+ | कीड़ी मरी पहाड़ पै खींचण चले चमार | ||
+ | दो सै जोड़ी जूती बणगी सांटै कई हजार | ||
+ | झूठ तै मैं बोलूं कोन्या... | ||
+ | कुतिआ चाली बिजार में गलै बांध के ईंट | ||
+ | बिजार के बणिए न्यूं उठ बोलैं ताई लता लेगी क छींट | ||
+ | झूठ तै मैं बोलूं कोन्या... | ||
</poem> | </poem> |
20:07, 14 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या झूठ की म्हारै आण
पानीपत के टेसण ऊपर मींडक बांटै बाण
एक अचंभा मन्नै सुण्या यो कुत्ता कपडणे धोवै
ओबरै में म्हैस जुगालै ऊंट पिलंग पै सोवै
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कीड़ी मरी पहाड़ पै खींचण चले चमार
दो सै जोड़ी जूती बणगी सांटै कई हजार
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...
कुतिआ चाली बिजार में गलै बांध के ईंट
बिजार के बणिए न्यूं उठ बोलैं ताई लता लेगी क छींट
झूठ तै मैं बोलूं कोन्या...