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"झूठ फैलाने का हैं हथियार अब / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'" के अवतरणों में अंतर

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झूठ  फैलाने  का  है  हथियार अब
 
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ये  हमारे  दौर  का  अख़बार  अब
 
ये  हमारे  दौर  का  अख़बार  अब
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वो  डुबो  देंगे  हमें  साहिल  पे ही
 
वो  डुबो  देंगे  हमें  साहिल  पे ही
 
जिनके  हाथों सौंप दी  पतवार अब
 
जिनके  हाथों सौंप दी  पतवार अब
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है नहीं  शिद्दत<ref>दीवानगी</ref>  कहीं अहसास में
 
है नहीं  शिद्दत<ref>दीवानगी</ref>  कहीं अहसास में
 
इश्क़  बिकता  है  सरे-बाज़ार अब
 
इश्क़  बिकता  है  सरे-बाज़ार अब
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देखिए  सोए  हैं  चादर  तानकर  
 
देखिए  सोए  हैं  चादर  तानकर  
साथ जनता के सभी फ़नकार<ref>कलाकार</ref> अब
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साथ जनता के सभी फ़नकार<ref>कलाकार</ref>अब
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गुल  खिलाए आपका  क्या  बैडरुम   
 
गुल  खिलाए आपका  क्या  बैडरुम   
 
चाहती  है  जानना  सरकार  अब
 
चाहती  है  जानना  सरकार  अब
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इंक़लाब    आएगा  होगी  इंतिहा<ref>अंत/पराकाष्ठा/हद</ref>
 
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होगी  सब  के  हाथ में तलवार अब
 
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हम  उजालों को  उठा लाए ‘शलभ'
 
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तीरगी<ref>अँधेरा</ref>  भी  हो गई  लाचार  अब
 
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21:01, 29 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण

झूठ फैलाने का है हथियार अब
ये हमारे दौर का अख़बार अब

वो डुबो देंगे हमें साहिल पे ही
जिनके हाथों सौंप दी पतवार अब

है नहीं शिद्दत<ref>दीवानगी</ref> कहीं अहसास में
इश्क़ बिकता है सरे-बाज़ार अब

देखिए सोए हैं चादर तानकर
साथ जनता के सभी फ़नकार<ref>कलाकार</ref>अब

गुल खिलाए आपका क्या बैडरुम
चाहती है जानना सरकार अब

इंक़लाब आएगा होगी इंतिहा<ref>अंत/पराकाष्ठा/हद</ref>
होगी सब के हाथ में तलवार अब

हम उजालों को उठा लाए ‘शलभ'
तीरगी<ref>अँधेरा</ref> भी हो गई लाचार अब