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झूमै गेहुंमा / नरेश पाण्डेय 'चकोर'

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गेहुँमा के बाल झूमेॅ बहेॅ हवा पछिया,
खनाखन डांट करेॅ खचाखच कचिया ।

काटी केॅ गेहुँमा आरो बान्ही केॅ बोझोॅ,
सभे गोरिया होलै खलिहानी दिस सोझोॅ
भाँती नाँकी फूलेॅ पचकेॅ सब के छतिया ।

उतारी देॅ हो मालिक आजकोॅ सब दीनी
बेची केेॅ गेहुँमा लानबोॅ नोेॅन-तेल कीनी
हुनका साथें पिछली बेरां जैबोॅ हम्में हटिया ।

वहाँ कीनी लेबोॅ हम्में चार पैसा के पीनी
बीड़ी आरु खैनी कीनी लेतात हिन्हीं ।
मेला जाय लेॅ किनबोॅ छीटी के सड़िया ।

बच्चा-बुतरू लेॅ आनबोॅ गोल-गोल लडुआ
तरकारी रीन्है लेॅ लानबोॅ तेल करुआ
थोड़ेॅ रस्सी लानबोॅ घोरै लेॅ खटिया ।

धान के बाद गेहुँमा, काटबै फिरु मकइया
एन्हैं केॅ बिताबै छियेॅ सौंसे समइया
हैस्सोॅ तोहें बाबू छोड़ोॅ हमरोॅ बतिया ।
गेहुँमा के बाल झूमेॅ बहेॅ हवा पछिया ।।