भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूमै छै, गावै छै तरूवर रसाल के / सियाराम प्रहरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम प्रहरी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झूमै छै, गावै छै तरूवर रसाल के
कोयलिया नाचै छै घुंघरू पग डाल के

सिन्दुरिया गाल लाल दुह टुह टुह टहकै छै
सबके मन देखि देखि लहकै छै बहकै छै
एन्होॅ में के रखथौं मन के संभाल के
कोयलिया नाचै छै घुंघरू पग डाल के

झूमि रहल छै भौरा मंजरी पर एन्होॅ
सूरज के बाँहोॅ में, कुन्ती छै जेन्होॅ
चलली लजाय हवा, घोघोॅ निकाल के
कोयलिया नाचै छै घुंघरू पग डाल के

बरजोरी पुरवा नें अँचरा सरकाय छै
देखि देखि केॅ हमरो मन केॅ हरसाय छै
टुह टुह छै गाल बिना रंगे गुलाल के
कोयलिया नाचै छै घुंघरू पग डाल के