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झूमै छै किसान / त्रिलोकीनाथ दिवाकर

झूमै छै किसान हो भैया, झूमै छै किसान
देखी के खरिहान हो भैया, झूमै छै किसान।

मिट्ठो-मिट्ठो तरबुज ककड़ी, बतिया छै झुखड़लो
चिकनो-चिकानो कद्दू परवल, खेतो में पसरलो
कीड़ा फतिंगा उड़ी-उड़ी, करै छै रसपान हो भैया
झूमै छै किसान।

सोनो रंग गहूँम के शीशो, कुसमी चकमक चमकै
चना-मटर रैचा, मौसरी झनझन-झनझन झनकै
धनियाँ गमकै आरी-आरी, खैतें बगरो हरान हो भैया,
झूमै छै किसान।

ढोलक झांझ मंजिरा संगे, झालें ताल मिलाबै
बच्चा-बूढ़ो-युवक सब टा चैता नाची गाबै
नया साल के नया उमंग सें, गूंजै छै जहान हो भैया,
झूमै छै किसान।