भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झोला / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 30 सितम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं जानती किन छोटी-मोटी जरूरतों के तहत
आविष्कार हुआ होगा झोले का
पहिये के बाद सृष्टि का सबसे बड़ा आविष्कार

समय की फिसलन से कुछ चीज़े बचा लेने की
इच्छाओं ने मिल -जुल कर रची होगी शक्ल झोले की
पर इससे पहले बनी होगी गठरियौ
कुछ सौगात अपनों के लिए
बांध लेने की ख्वाहिश में

उम्र के बहाव में पीछा करते एहसास
मुश्किलें आसन करने के कुछ आसन नुस्ख़े
अपनों के लिए बचाने की खातिर ही
बनी होगी तह-दर-तह
चेहरे पर झुर्रियो की झोली
जिसे बाँट देना चाहता होगा हर शख्स
जाने से पहले
कि बची रह सके उसके छाप और परछाईं

कुछ लेने के लिए भी तो चाहिए झोले
घर में एक के बाद एक आते है दूसरे नए-नए झोले
कभी-कभी सिर्फ़ अपने लिए बनते है ये
दिल की भीतरी तहों में
हर झोले में होते है चीज़ो के अलग महीन अर्थ
लिपि बनने को आतुर रेखाऍ
शिल्प में ढलने को मचलती आकृतियाँ
जागते हुए सपने देखने की कला

दरअसल इसी में फंसा होता है हमारा चेहरा