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टहक ते टहकु तो ॾिनो थे किअं! / अर्जुन हासिद
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टहक ते टहकु तो ॾिनो थे किअं!
तोखां कहिं ते खिलणु पुॻो थे किअं!
माण्हू केॾो न नेक सॾिजीं थो,
जंहिं सां तंहिं कयुइ फॾो थे किअं!
वाको-वाकाणि मां न वरिणो कुझ,
चुप रहणु भी चङो लॻो थे किअं!
जंहिं सां सुॾिकियो जमीर थे कंहिंजो,
लफ़्ज अहिड़ो को तो चयो थे किअं!
गरि खे पुणि स्वाद थींदो आ,
वरितो कंहिं कंहिं न ॾिसु मज़ो थे किअं!
बहस ई बहसु ज़िंदगी आहे,
मन ते केॾो चढ़ियो नशो थे, किअं!
कंहिं में हासिद को माण्हपो न रहियो,
हरको विच ते बिही वॻो थे किअं!