Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 20:23

टहनी पर फूल जब खिला / उमाकांत मालवीय

टहनी पर फूल जब खिला
हमसे देखा नहीं गया ।

एक फूल निवेदित किया
गुलदस्ते के हिसाब में
पुस्तक में एक रख दिया
एक पत्र के जवाब में ।
शोख रंग उठे झिलमिला
हमसे देखा नहीं गया ।

प्रतिमा को
औ समाधि को
छिन भर विश्वास के लिये
एक फूल जूड़े को भी
गुनगुनी उसांस के लिये ।
आलिगुंजन गंध सिलसिला
हमसे देखा नहीं गया ।

एक फूल विसर्जित हुआ
मिथ्या सौंदर्य-बोध को
अचकन की शान के लिये
युग के कापुरुष क्रोध को
व्यंग टीस उठी तिलमिला ।
हमसे देखा नहीं गया ।