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टिकवा कारन लाड़ो रूस रहल रे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टिकवा<ref>मँगटीका, माँग के ऊपर पहना जाने वाला आभूषण</ref> कारन लाड़ो<ref>लाड़ली दुलहन</ref> रूस<ref>रूठना</ref> रहल रे, टिकवा कहाँ रे गिरे?
टिकुली कारन लाड़ो गोसा<ref>गुस्सा, क्रोध</ref> से भरे, टिकुली कहाँ रे भुले?॥1॥
गंगा में गिरल, जमुना दह<ref>झील</ref> पड़ल, टिकवा कहाँ रे गिरे?
पाँव पड़ि बनरा<ref>बन्ना। दुलहा का अपभ्रंश ‘बनरा’ है इस अपभ्रंश के प्रयोग से दुलहे को बन्दर भी बनाया गया है, जिसे मदारी अनेक तरह से नचाता है। यहाँ दुलहन को मदारी माना गया है।</ref> मनावे रे लाड़ो, टिकवा खोजि खोजि लायम<ref>लाऊँगा</ref>॥2॥
गंगा में देब महाजाल, जमुनमा दह डूबि डूबि लायम।
लगे देहु हाजीपुर<ref>बिहार प्रदेश में ‘हाजीपुर’ का बाजार कभी बहुत प्रसिद्ध था। मुसलमानी शासन मंe ‘हाजीपुर’ उन्नति की चोटी पर था, इसलिए ग्रामीण गीतों में प्रायः बाजार के लिए ‘हाजीपुर’का व्यवहार होता है।</ref> बजार, टिकवा कीनि-कीनि<ref>खरीदकर, क्रय करके</ref> लायम॥3॥
जाये देहु हमरो बनीज<ref>वाणिज्य पर</ref> टिकुली रंगे रंगे<ref>रंग-बिरंग की</ref> लायम।
लाइ देबो नौलखहार<ref>नौ लाख मुद्रा का हार-‘नौलखा हार’</ref> सेजिया चकमक रे करे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>