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"टिका दिए हैं ओक में / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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शुभ कर्मों का है मिला, बदले यह उपहार।
 
शुभ कर्मों का है मिला, बदले यह उपहार।
 
टिका दिए हैं ओक में,कुछ काँटे, अंगार।
 
टिका दिए हैं ओक में,कुछ काँटे, अंगार।
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जिन अधरों से थे झरे,हरदम हरसिंगार।
 
जिन अधरों से थे झरे,हरदम हरसिंगार।
 
अपने चुन -चुन ले गए, होते ही भिनसार।।
 
अपने चुन -चुन ले गए, होते ही भिनसार।।
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मेरे भी मन में रही,आऊँ तेरे द्वार।
 
मेरे भी मन में रही,आऊँ तेरे द्वार।
 
पग के छाले रोकते, चलने से हर बार।
 
पग के छाले रोकते, चलने से हर बार।
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अनजानी राहें सभी,साया ही था साथ।
 
अनजानी राहें सभी,साया ही था साथ।
 
जीवन अंधा मोड़ था,थामा तुमने हाथ।।
 
जीवन अंधा मोड़ था,थामा तुमने हाथ।।
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रात  उदासी से भरी , हम कर दे उजियार।
 
रात  उदासी से भरी , हम कर दे उजियार।
 
चन्दा अपने साथ तो ,मिट जाए  अँधियार
 
चन्दा अपने साथ तो ,मिट जाए  अँधियार
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जीवन में तुमको मिले, सारा सुख- संसार ।
 
जीवन में तुमको मिले, सारा सुख- संसार ।
 
यश फैले चारों दिशा,बरसे पावन प्यार।।
 
यश फैले चारों दिशा,बरसे पावन प्यार।।
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राजा जनता का रहा, युगों युगों से खेल
 
राजा जनता का रहा, युगों युगों से खेल
 
कोल्हू में पेरे गए,खींचा सारा तेल।।
 
कोल्हू में पेरे गए,खींचा सारा तेल।।
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नारी की पूजा कहाँ, पढ़ी नहीं है पीर।
 
नारी की पूजा कहाँ, पढ़ी नहीं है पीर।
 
कोई भी हो युग रहा,पापी खींचे  चीर ।
 
कोई भी हो युग रहा,पापी खींचे  चीर ।
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अब आएँ या अब मिलें, रोम -रोम हैं कान ।
 
अब आएँ या अब मिलें, रोम -रोम हैं कान ।
 
कौन द्वार पर है खड़ा उनको तनिक न भान।
 
कौन द्वार पर है खड़ा उनको तनिक न भान।
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रस्ते में दम तोड़ते, सारे ही सन्देश।
 
रस्ते में दम तोड़ते, सारे ही सन्देश।
 
आँखों में मन में तिरे, तेरे उलझे केश।।
 
आँखों में मन में तिरे, तेरे उलझे केश।।
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खोया -खोया दिन रहा,आँसू भीगी रात।
 
खोया -खोया दिन रहा,आँसू भीगी रात।
 
पलभर को कब हो सकी,अपनों से भी बात।।
 
पलभर को कब हो सकी,अपनों से भी बात।।
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बाहर छाया मौन था,भीतर हाहाकार।
 
बाहर छाया मौन था,भीतर हाहाकार।
 
मन में रिसते घाव थे,हुआ नहीं उपचार।
 
मन में रिसते घाव थे,हुआ नहीं उपचार।
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कहने को तो भीड़ थी,आँगन तक में शोर।
 
कहने को तो भीड़ थी,आँगन तक में शोर।
 
मेरे अपने मौन थे,चला न उन पर जोर।।
 
मेरे अपने मौन थे,चला न उन पर जोर।।
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नींद नहीं थी नैन में,सपने कोसों दूर।
 
नींद नहीं थी नैन में,सपने कोसों दूर।
 
मन की मन में ही रही,सब कुछ चकनाचूर।।
 
मन की मन में ही रही,सब कुछ चकनाचूर।।
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जीवन को बाँधे सदा, गहन प्रेम की डोर।
 
जीवन को बाँधे सदा, गहन प्रेम की डोर।
 
नेह -भाव से हों पगे, जिसके दोनों छोर।।
 
नेह -भाव से हों पगे, जिसके दोनों छोर।।

20:13, 14 मई 2019 के समय का अवतरण


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शुभ कर्मों का है मिला, बदले यह उपहार।
टिका दिए हैं ओक में,कुछ काँटे, अंगार।
62
जिन अधरों से थे झरे,हरदम हरसिंगार।
अपने चुन -चुन ले गए, होते ही भिनसार।।
63
मेरे भी मन में रही,आऊँ तेरे द्वार।
पग के छाले रोकते, चलने से हर बार।
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अनजानी राहें सभी,साया ही था साथ।
जीवन अंधा मोड़ था,थामा तुमने हाथ।।
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रात उदासी से भरी , हम कर दे उजियार।
चन्दा अपने साथ तो ,मिट जाए अँधियार
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जीवन में तुमको मिले, सारा सुख- संसार ।
यश फैले चारों दिशा,बरसे पावन प्यार।।
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राजा जनता का रहा, युगों युगों से खेल
कोल्हू में पेरे गए,खींचा सारा तेल।।
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नारी की पूजा कहाँ, पढ़ी नहीं है पीर।
कोई भी हो युग रहा,पापी खींचे चीर ।
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अब आएँ या अब मिलें, रोम -रोम हैं कान ।
कौन द्वार पर है खड़ा उनको तनिक न भान।
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रस्ते में दम तोड़ते, सारे ही सन्देश।
आँखों में मन में तिरे, तेरे उलझे केश।।
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खोया -खोया दिन रहा,आँसू भीगी रात।
पलभर को कब हो सकी,अपनों से भी बात।।
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बाहर छाया मौन था,भीतर हाहाकार।
मन में रिसते घाव थे,हुआ नहीं उपचार।
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कहने को तो भीड़ थी,आँगन तक में शोर।
मेरे अपने मौन थे,चला न उन पर जोर।।
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नींद नहीं थी नैन में,सपने कोसों दूर।
मन की मन में ही रही,सब कुछ चकनाचूर।।
75
जीवन को बाँधे सदा, गहन प्रेम की डोर।
नेह -भाव से हों पगे, जिसके दोनों छोर।।