टिक-टिक
सुइयाँ तीन,
घड़ी की।
दिन में बारह गाँव चलेंगी।
छोटे-छोटे पाँव चलेंगी।
आधी रात गुजर जाएगी,
तब फिर बार गाँव चलेंगी
टिक-टिक
सुइयाँ तीन,
घड़ी की।
एक ‘सैल’ पर इतराएँगी।
नए जोश से भर जाएँगी।
‘सैल’ जहाँ कमजोर हुआ तो
वहाँ अचानक रुक जाएँगी।
टिक-टिक
सुइयाँ तीन,
घड़ी की।