भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टीपूलाल टिपोरीलाल / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टीपूलाल टिपोरीलाल,
भैया, यह कैस है हाल!

उड़े-उड़े से तुम रहते हो,
कुछ गुमसुम-गुमसुम रहते हो।
टीपू जी, अब थोड़ा पढ़ लो,
वहीं खड़े हो, थोड़ा बढ़ लो।
टीप-टीपकर क्या होना है,
रोना-आखिर में रोना है।
टीपूलाल टिपोरीलाल,
भैया, कितना टीपा माल!

जो टीपा था, काम न आया,
इसीलिए क्या मन झल्लाया?
जीरो, जीरो, सबमें जीरो,
भैया तुम हो कैसे हीरो!
साइंस, हिस्ट्री या भूगोल
सबमें ही बस डब्बा गोल!

इसलिए क्या ऐंची-बेंची,
शक्ल तुम्हारी है उल्लू-सी।
टीपू जी, अब बात न करते,
खुद से ही अब इतना डरते।
टीपूलाल, टिपोरीलाल,
भैया, क्यों उखड़ी है चाल?

इससे तो अच्छा है पढ़ लो,
थोड़ा भाई, आगे बढ़ लो।
पढ़ो-लिखो तो मिले बड़ाई,
नकल किसी के काम न आई।
सीखो भाई, अच्छी बात,
तो दिन में ना होगी रात।

टीपूलाल, टिपोरीलाल,
नकल टिपाई को दो टाल।
तब बदलेंगे सचमुच हाल,
वरना नहीं गलेगी दाल।

टीपूलाल, टिपोरीलाल,
भैया, क्यों उखड़ी है चाल,
ऐसी क्यों उखड़ी है चाल!