दिन डूबा औ रात हुई मन
यह भी कोई बात हुई मन ।
डार-डार पर टँगी हवाएँ
अपने रंग में रँगी हवाएँ
धुएँ-धुएँ बरसात हुई मन ।
टुकड़े-टुकड़े रात कटी है,
क्या कोई ख़ैरात बँटी है
कब की नींद हयात हुई मन ।
तालू से जुबान मिलती है
दाँतों की कोठी हिलती है
हर इच्छा आपात हुई मन ।