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Kavita Kosh से
'''टूटी हुई बिखरी हुई पढ़ाते हुए'''
एक प्रतिनियुक्ति विशेषज्ञ की हैसियत से
मैंने कहा कि उनकी कविता का देशकाल एक बच्चे का मन है
कि उनके मन का क्षेत्रफल पूरी सृच्च्िट सृष्टि के क्षेत्रफल जितना है
कि उनकी कविता का खयालखाना है जिसके बाहर खड़े
जब मैं जैसे तैसे कक्षा से बाहर आ चुका था और शमशेर से और दूर हो चुका था।
(प्रथम प्रकाशनः वागर्थ,भारतीय भाषा परिषद,कोलिकाता)
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