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टूटे हुए पर की बात / ज्ञान प्रकाश विवेक

कभी दीवार कभी दर की बात करता था

वो अपने उज़ड़े हुए घर की बात करता था


मैं ज़िक्र जब कभी करता था आसमानों का

वो अपने टूटे हुए पर की बात करता था


न थी लकीर कोई उसके हाथ पर यारो

वो फिर भी अपने मुकद्दर की बात करता था


जो एक हिरनी को जंगल में कर गया घायल

हर इक शजर उसी नश्तर की बात करता था


बस एक अश्क था मेरी उदास आंखों में

जो मुझसे सात समंदर की बात करता था