भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूट गया रिश्ता अपने से / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 29 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वन में फूले अमलतास हैं
घर में नागफनी ।

हम निर्गंध पत्र-पुष्पों को
दे सम्मान रहे
पाटल के जीवन्त परस से
पर अनजान रहे

सुधा कलश लुढ़का कर मरु में
करते आगजनी ।

तन मन धन से रहे पूजते
सत्ता, सिंहासन
हर भावुक सन्दर्भ यहाँ पर
ढोता निर्वासन

राजद्वार तक जो पहुँचा दे
वह ही राह चुनी ।

टूट गया रिश्ता अपने से
इतने सभ्य हुए
औरों को क्या दे पाते, कब-
ख़ुद को लभ्य हुए

दृष्टि रही जो अमृत-वर्षिणी
जलता दाह बनी ।