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ठण्डी कविता / अमित कल्ला

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कितना
जानो
अपने आपको

जितना
लोग जानते
फिर भी नहीं
बोलते
वहीं राह चलते

कविता
जानती भी
बोलती भी है

शायद कोयल
कविता ही
गर्म दोपहर में
ठण्डी कविता।