ठण्ड से मेरा सामना यूँ हुआ था अचानक
जबकि वह कहीं गई नहीं और मैं आया नहीं
सलवटें सब दूर हुईं, मिटीं झुर्रियाँ भयानक
अब जीवन सहज-सरल होगा, समतल व सतही
सूरज ने मिचकाईं आँखें गरीबी की अकड़ में
उसके मन में है तसल्ली पूरी, और जोश भरपूर
मीलों तक फैला जंगल है ठण्ड की जकड़ में
श्वेत हिम चुभे आँखों में, ज्यूँ नई फ़सल का नूर