Last modified on 26 फ़रवरी 2024, at 12:22

ठहर, कल झील निकलेगी इसी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 26 फ़रवरी 2024 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ठहर, कल झील निकलेगी इसी से।
निकलने दे अगन ज्वालामुखी से।

सफाई कर मदद ले के किसी से,
कहाँ भागेगा ख़ुद की गंदगी से।

मिली है आज सारा दिन मुहब्बत,
सुबह तेरे लबों की बोहनी से।

बताये कोयले को भी जो हीरा,
बचाये रब ही ऐसे पारखी से।

समय भी भर नहीं पाता है इसको,
सँभल कर घाव देना लेखनी से।

हक़ीक़त का मुरब्बा बन चुका है,
लगा बातों में लिपटी चाशनी से।

उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’,
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से।