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|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान
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देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं <br> सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं <br><br>
धूमधाम से साज-बाज से वे मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी फिर भी साहस कर मंदिर में आते हैं <br>मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं <br><br>पूजा करने चली आयी
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ धूप-दीप-नैवेद्य नहीं लायी <br>है झांकी का श्रृंगार नहीं फिर भी साहस कर मंदिर हाय! गले में पूजा करने चली आयी <br><br>पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है झांकी का श्रृंगार माधुर्य नहीं <br> हाय! गले मन का भाव प्रकट करने को वाणी में पहनाने को फूलों का भी हार चातुर्य नहीं <br><br>
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में नहीं दान है माधुर्य , नहीं <br>दक्षिणा खाली हाथ चली आयी मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य पूजा की विधि नहीं <br><br>जानती, फिर भी नाथ चली आयी
नहीं पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो दान है, नहीं -दक्षिणा खाली हाथ चली आयी <br>पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी <br><br>और निछावर इसी भिखारिन को समझो
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो <br>मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो <br><br>जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ <br>जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ <br><br> चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो <br> यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो <br><br/poem>
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