भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / गुंजनश्री

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 5 मार्च 2017 का अवतरण (Sharda suman ने डर / गुंजन श्री पर पुनर्निर्देश छोड़े बिना उसे डर / गुंजनश्री पर स्थानांतरित किया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिन पर भेंट भेल
अप्पन माटि आ पानी सँ

माटि जरि रहल छैक
सुरुजक धाह सँ
आ पानी लय करैत छैक
चीत्कार, खेत-पथार सब

सुनै छियैक जे पहिलो कहियो भेल छलैक
एहने सन रौदी
आ ओहि मे हाक्रोश क' उठल छल सब कियो
आ फेर रौदी बदलि गेलैक अकाल मे
आ परि गेलैक अकाल अन्न के

गामक आरि पर बैसल एकटा बाबा
आकाश दिस ताकि बजैत छलाह-
जौं पानी नै देबहक त' कोना हेतैक अन्न
आ अन्न नहीं हेतैक त' मरि जायत
भुखल पियासल सब लोक
तखन तोरा अधिष्ठित के करत हौ?
के चढ़ेतह परसाद आ अछिञ्जल?
कत्तः स' हेतह तोहर निमेरा
सोलहो देबान के
कोना खेपबह कलियुग?

सुनै छि काल्हि हमरा अयालक बाद
खूब भेलैक अछि पानि
बोदम-बोदा भ' गेलैक आरि-धुर
बुझा परैत छैक धरती परहक लोक जकाँ
भगवानो आब डेरैत छथिन
अप्पन आ अप्पन परिवार के
भुखल रहबाक डर स'।