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डर / स्वरांगी साने

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तुम मेरे जीने में हस्तक्षेप नहीं करते
मैं तुम्हारे जीवन में
दखल नहीं देती
होते हैं हम साथ
तो हम आश्वस्त करते हैं एक दूसरे को
कि हम हैं साथ-साथ।
जबकि हम भी जानते हैं
जिस पल हुए दूर
उसी पल से हो जाएँगे अलग।

हम होते हैं साथ
तो जी भर कर देख लेते हैं एक-दूसरे को
हँस लेते हैं
उम्र भर की हँसी
रो लेते हैं अपने ही जीने की रुलाई।

झगड़ते हैं
और प्यार भी करते हैं
हम साथ होते हैं
ऊष्मा से भरे
आलिंगनबद्ध।
जब दूर होते हैं
तो हमारी बाँहों में होता है
सारा आकाश
पूरी पृथ्वी
जल-थल
धरातल।

कहीं और
किसी और से गपियाती हूँ मैं
तुम ठहाके लगाते हो किसी और के साथ
हम दोनों की दुनिया
हो जाती है
इतनी अलग
कि पहुँच नहीं पाता
हमारे सुख-दु:ख का
कोई समाचार
एक-दूसरे तक।
जब हम नहीं होते साथ
तो नहीं होते साथ।

कोई ढकोसला नहीं करते
किसी तरह की सांत्वना नहीं देते खुद को।
हम स्वीकारते हैं जीना
गोया
सभी तो ऐसे ही जीते हैं
पर जब
होते हैं हम साथ
तो हम नहीं जीते वैसे
जैसे सब जीते हैं।

तब मैं जीती हूँ
जैसा तुम चाहते हो
और तुम जीते हो
जैसा मैं चाहती हूँ।

हम
चाहकर भी नहीं बदल सकते
अपना वर्तमान
नहीं कर सकते
भविष्य में साथ होने का वादा।

हम प्रेम करते हैं
ऐसे जैसे
इसी तरह हो सकता है
जीवन का श्रेष्ठतम प्रेम।

हम कुरेदते हैं
एक दूसरे के मन पर
अपने हस्ताक्षर।
हम जीते हैं
एक दूसरे की आँखों में
अपने भाव।
हम साँसों की अदला-बदली करते हैं

तुम चाहते हो
मैं जीऊँ तुमसे ज़्यादा
मैं चाहती हूँ
तुम जीयो मुझसे ज़्यादा।

सबके साथ
होते हुए भी
अकेले पड़ जाते हैं हम
जब नहीं होते
साथ-साथ।
हाँ, हम
अकेले हो जाने से डरते हैं।