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डांखळा 2 / शक्ति प्रकाश माथुर

‘कूमोजी’ सुखावण गया, डागळै पर काचरी।
साफलियो उतार बैठग्या ठण्डी छिंया गाछ री।।
नीमड़ी पर आगली।
ब्यायोड़ी ही कागली।।
मार मार पंजां बां’री फोड़ नाखी टाचरी।।

जूडो सीख्योड़ी ‘जूही’ री ‘चंपो’ चुन्नी खींची।
पळट’र चेपी लात उछळ’र बीरी नसड़ी भींची।।
होई घणी खारी।
अबला पडग़ी भारी।।
लोग लताड़्यो लाजां करतो नाड़ न्हाखली नीची।।

सुवै आळै जोतकी पर ‘पेमी’ पटकी पांड।
लालतातो हो’र बोल्यो, आंधी है कै रांड।।
पेमी बणगी चण्डी।
फाड़ी बीरी बण्डी।।
धूळ में खिण्डा दी दोन्यूं, पाण्ड आळी खाण्ड।।