भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात / शहजाद अहमद

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:12, 29 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहजाद अहमद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> डूब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
देखती रह जाएँगी आँखें गुज़र जाएगी रात

रात का पहला पहर है अहल-ए-दिल ख़ामोश है
सुब्ह तक रोती हुई आँखों से भर जाएगी रात

आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
बे-तलब आएगा दिन और बे-ख़बर जाएगी रात

रौशनी कैसी अगर आलम अंधेरा हो गया
दिल में बस जाएगी आँखों में उतर जाएगी रात

कोई आहट भी न सुन पाएगा ख़्वाबीदा चमन
ख़ुश्क पत्तों पर दबे पाँव गुज़र जाएगी रात

दिल में रह जाएँगें तन्हाई के क़दमों के निशाँ
अपने पीछे कितनी यादें छोड़ कर जाएगी रात

शाम ही से सो गए हैं लोग आँखें मूँद कर
किस का दरवाजा खुलेगा किस के घर जाएगी रात

देर तक ‘शहज़ाद’ आँखों में फिरेगी चाँदनी
कट तो जाएगी मगर क्या कुछ न कर जाएगी रात