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डेली में मछली / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी

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डेली<ref>काँस नाम की वनस्पति से बनाया हुआ मछली रखने वाला बर्तन।</ref> में
अब कहाँ मिलेगी मछली!

हैं दो–चार लहसुन की पुटलियाँ
कुछ दाने आलू
प्याज और मिर्चा

मछली?
मछली तो इस मगुवै नदी में
बहुत थी बहुत!

माघी<ref>एक पर्व</ref> में
जितिया<ref>थारु महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक पर्व, तीज।</ref> और अमोशा<ref>थारु समुदाय में पितरों के सम्मान में मनाया जाने वाला एक पर्व।</ref> में
गिनती नहीं
कितनी मारी मैंने
मेरी जवानी जैसी मछली!

मेरी उमर कि तरह
अभी तो
बहकर चली गयी सभी

फिर भी
हर साल बुनता हूँ डेली
काट काटकर काँस की महीन साखें

तअज्जुब में हूँ
किस शाखा में घुस गई होंगी?
किस नदी में मिल गई होंगी?
सारी की सारी मछलियाँ?

आदमी और मछली वैसे ही है
बहकर जाने के बाद
कभी लौटकर न आने वाले!

कोई तो लौटा दो नदी कि इस धारा में
सुनहरी मछलियों की फ़ौज
कि देखूँ किनारे से
अपना यौवन लौटकर आता हुआ!

शब्दार्थ
<references/>