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डॉ. ज्ञान चंद / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी

"फर्शे-नज़र" का तोहफ़ा मिला। आप दरवेश मनुष्य बुज़ुर्ग हैं लेकिन ग़ज़लों में ये शिद्दत, ये तबो-ताब, ये सोज़े-दरूं कहां से भर गया है। ख़ूब कहा है उस्तादाना कहा है। रुबाइयों और नज़्में भी दाद से मुस्तग्नी हैं।