भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ / परमानंददास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डोल माई झूलत हैं ब्रजनाथ ।
संग शिभित वृषभान नंदिनी ललिता विशाखा साथ ॥१॥
वाजत ताल मृदंग झांझ डफ रुंज मुरज बहु भांत ।
अति अनुराग भरे मिल गावत अति आनंद किलकात ॥२॥
चोवा चण्दन बूकावंदन उडत गुलाल अबीर ।
परमनानंद दास बलिहारी राजत हे बलवीर ॥३॥