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ढलता सूरज / नवनीत पाण्डे

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घर के बाहर खड़ा
वह देख रहा है अपना घर
उसका भीतर
भीतर का भीतर
मैं देख रहा हूं उसके चेहरे पर
अनंत के सारे रंग
अंत के सारे रूप
दूर आसमान में
झीने-झीने बादलों के पीछे
धुंधलाता,अपनी चमक ढोता
ढलता सूरज