भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढेंचू-ढेंचू / सुशान्त सुप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम भी अच्छे, तुम भी अच्छे
दोनों अच्छे, ढेंचू-ढेंचू

जो भी हम-सा राग अलापे
वह भी अच्छा, ढेंचू-ढेंचू

मेरा खूँटा, मेरी रस्सी
यही है दुनिया, ढेंचू-ढेंचू

हम भी गदहे, तुम भी गदहे
जग गदहामय, ढेंचू-ढेंचू

यदि तुम हिन-हिन करते हो तो
तुम घटिया हो, ढेंचू-ढेंचू