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ढोकर जीता हूँ / राजकिशोर सिंह

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क्यों रो-रोकर जीता हूँ
ऽुद को ऽोकर जीता हूँ
मुल्क में अपना कोई नहीं
सबका होकर जीता हूँ

सिर भार सहन न करता
पीठ पर ढोकर जीता हूँ
जीवन भर कलंक लगा रहा
कलंक को धेकर जीता हूँ

ऽड़ा होने का बल नहीं
पिफर भी सोकर जीता हूँ
अमृत मुझसे हुआ नहीं
तो विष बोकर जीता हूँ।