ढौरी कौन लागी ढुरि जैबे की सिगरो दिन,
छिनु न रहत घरै कहों का कन्हैया कों ।
पल न परत कल विकल जसोदा मैया,
ठौर भूले जैसे तलबेली लगै गैया कों ।
आँचर सों मुख पोंछि-पोंछि कै कहति तुम,
ऐसे कैसे जान देत कहूँ छोटे भैया कों ।
खेलन ललन कहूँ गए हैं अकेले नेंकु,
बोलि दीजै बलन बलैया लाग मैया कों ।